मैं आकांक्षा सक्सेना, उत्तर प्रदेश ग्राम कुस्मोरी जिला लखीमपुर खीरी में रहती हूँ। जब मैं ग्यारह साल की थी मेरी माँ पंचतत्व में विलीन हो गई। माँ के जाने के बाद मेरी और बहन की परवरिश दादी माँ कर रहीं हैं। मैं इस समय चौदह वर्ष की हूँ । मैं सेंट जॉन्स स्कूल, गोल गोकरन नाथ में दसवी कक्षा में पढ़ती हूँ। मेरे पिता जी पेशे से एक वकील हैं और मेरे दादा जी जमींदार हैं। पाँच साल की छोटी सी उम्र में मेरे मन कविता लिखने की जिज्ञासा उत्पन हुई। मैने अखबार पर एक छोटी सी कविता लिखी। मेरी पहली कविता कुछ इस प्रकार थी – “अखबार आया, अखबार आया। नई- नई खबरे लाया। जल्दी से उठो- उठो अखबार पढ़ो। पत्रकार ने ऐसा अखबार बनाया, जिसने सबके मैं को भाया। आखिरी की दो पंक्तियों मे मुझे मेरी दादी जी का सहयोग मिल। उसके बाद मेरे मन में विचार आते गए और मैं लिखती चली गई। मैं अधिकतर आत्म प्रेम पर, सामाजिक मुद्दो पर, जिंदगी पर और प्रेरिक कविताओं लिखती हूँ। “और भी हैं ” कविता श्रीबालकृष्ण राव के द्वारा लिखी गई हैं , जिनकी कविताओं को पढ़ कर मुझे बहुत बड़ी प्रेरणा आगे बढ़ने की मिली है। मेरे परिवार और मेरे मित्रो का मुझे आगे बढ़ने में बहुत सहयोग रहा। तो दोस्तों यह थी मेरी छोटी सी ज़िंदगी में हुए किस्सों से परिपूर्ण एक आत्मकथा। आशा है आपको यह पसन्द आई होगी धन्यवाद आपकी आकांक्षा