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Rupesh Pandey ‘Rupak’

मंद हुआ कोलाहल, हलाहल मन में भर बैठा हूँ जो समक्ष, वो है सक्षम , वो ही उत्तम तो मैं क्या हूँ ? आप सभी की तरह मैं भी हर दिन अपनी तलाश में हूँ, कभी शाम के धुंधलके में , कभी रात के सन्नाटे में, कभी उषा की लालिमा में और कभी दोपहर की उमस में, अपने आप उभर आये कुछ भावों को शब्दों में पिरोते-पिरोते कविताओं का एक संग्रह बनता चला गया । दस वर्ष की आयु में पहली कविता लिखी थी अंग्रेज़ी की नोटबुक के पिछले पन्ने पर, टीचर ने पकड़ लिया और सबके सामने कविता सुनाने को बोल दिया, उसके बाद क्या हुआ वह पूरी कहानी इस पुस्तक की प्रस्तावना में है, संक्षेप में कहूँ तो हर व्यक्ति कोई न कोई नैसर्गिक प्रतिभा लेकर जन्मता है, यदि कोई पारखी जौहरी मिल जाये तो प्रतिभा निखर जाती है अन्यथा जीवन की आपा-धापी में बिखर जाती है, मुझे कुछ जौहरी मिले, कुछ प्रोत्साहन देने वाले भी मिले, किन्तु जीवन-चक्र में जुतना भी अपरिहार्य था, गृह-जिले रीवा, मध्यप्रदेश से अभियांत्रिकी में स्नातक किया, और सपनों के शहर मुंबई से प्रबंधन में स्नातकोत्तर, उसके पश्चात IT जगत की नौकरी के चक्र्व्यूह में फंसकर बेंगलुरु, नागपुर से होते हुए वर्तमान में पुणे में पड़ाव डाल रखा है । कोविड महाराज की कृपा से साहित्य की ओर जुड़ाव फिरसे बढ़ना शुरू हुआ तो सफर लंबा चल निकला, अखिल-भारतीय स्तर पर कुछ काव्य प्रतियोगिताओं में पुरस्कार पाकर उत्साह बढ़ा तो ठान लिया कि पुस्तक लिखने का काम भी कर ही लिया जाये, कल-कल करते तो कई साल, और दशक बीत गए । साथ ही साथ सोशल मिडिया में भी सक्रिय रूप से साहित्य साधना जारी है, प्रतिलिपि हिंदी पोर्टल पर नियमित रूप से व्यंग्य, कहानी, लेख और कविताओं का प्रकाशन चल रहा है, सभी संपर्क स्त्रोतों का विवरण पुस्तक में दिया है ।

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